A poem about changing the centres A poem about changing the centres
लोगों से क्या, अब खुद से अंजान रह जाते हैं शीशे में भी हम, नज़र नहीं आते हैं|| लोगों से क्या, अब खुद से अंजान रह जाते हैं शीशे में भी हम, नज़र नहीं आते हैं||
कभी करीब से देखो मौत को परवानो कि तरह, तो उसके दामन में गिरे अश्क में भीग जाने को दिल हो ही जायेगा। कभी करीब से देखो मौत को परवानो कि तरह, तो उसके दामन में गिरे अश्क में भीग जाने ...
मैं बोला - "यही तो है संसार में ख़ुशियों भरी पेड़ की जड़ ।" मैं बोला - "यही तो है संसार में ख़ुशियों भरी पेड़ की जड़ ।"
नाम की महिमा "राम" ही जानै,कोटिन पाप हर लीनो। नाम की महिमा "राम" ही जानै,कोटिन पाप हर लीनो।
मैं हूं तेरी कठपुतली नाचूं तेरे हाथ में। मैं हूं तेरी कठपुतली नाचूं तेरे हाथ में।